राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के अररिया जिले के जिलहरा नामक गाँव में हुआ था।

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राजेंद्र प्रसाद का जीवन अत्यधिक प्रेरणादायक और समर्पण का प्रतीक रहा है। उनका जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय गणराज्य के पहले राष्ट्रपति के रूप में उनकी सेवा के साथ गहरे रूप से जुड़ा हुआ है। इस लेख में हम उनकी जीवनी पर विस्तार से चर्चा करेंगे, जो उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करेगा

राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के अररिया जिले के जिलहरा नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम महादेव सहाय था, जो एक किसान थे। उनकी माता का नाम कमलापति देवी था। राजेंद्र प्रसाद का पारिवारिक माहौल साधारण था, लेकिन उनके माता-पिता ने उन्हें शिक्षा और संस्कारों की महत्ता समझाई। वे चार भाई-बहन थे और अपने परिवार में सबसे छोटे थे।

राजेंद्र प्रसाद का प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा उनके गांव के स्कूल में हुई। बाद में उन्होंने पटना और फिर कोलकाता में शिक्षा प्राप्त की। उनका शैक्षिक जीवन बहुत ही प्रेरणादायक था, और उन्हें बचपन से ही पुस्तकें पढ़ने का बहुत शौक था।

2. शिक्षा और संघर्ष:

राजेंद्र प्रसाद ने पटना विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा पूरी की और फिर कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से अपनी उच्च शिक्षा की। वे एक मेधावी छात्र थे और उन्होंने इतिहास, राजनीति और अर्थशास्त्र जैसे विषयों में गहरी रुचि ली। उनकी अध्ययन में गहरी रुचि थी, और यही कारण था कि उन्होंने अपने जीवन को केवल राजनीति तक सीमित नहीं रखा, बल्कि हर क्षेत्र में खुद को उत्कृष्ट बनाने का प्रयास किया।

3. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ाव:

राजेंद्र प्रसाद का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ाव महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर हुआ। 1916 में उन्होंने कांग्रेस से जुड़ने का निर्णय लिया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में विभाजन और असहमति के बावजूद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका निभाई।

महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने असहमति के बावजूद अपने आंदोलन में भाग लिया। राजेंद्र प्रसाद को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी के अनुयायी के रूप में जाना जाता था।

4. स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:

राजेंद्र प्रसाद ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहमति और अहिंसक प्रतिरोध का समर्थन किया। वे स्वदेशी आंदोलन और असहमति आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेते थे। उनका योगदान भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में अत्यंत महत्वपूर्ण था।

5. महात्मा गांधी के साथ:

राजेंद्र प्रसाद महात्मा गांधी के साथ एक मजबूत साझेदारी में थे। वे गांधीजी के विचारों का पालन करते थे और उनके नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को समर्थन देते थे। 1930 में उन्होंने नमक सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी सक्रिय रूप से भाग लिया।

महात्मा गांधी के साथ उनकी नजदीकी दोस्ती और उनके विचारों का पालन राजेंद्र प्रसाद को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्त्वपूर्ण नेता के रूप में स्थापित करता है।

6. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद:

भारत की स्वतंत्रता के बाद, राजेंद्र प्रसाद का कद और भी बड़ा हो गया। उन्होंने भारतीय गणराज्य के पहले राष्ट्रपति के रूप में अपनी भूमिका निभाई। उनकी अध्यक्षता में भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए।

उनका कार्यकाल भारतीय राजनीति में एक नायक के रूप में देखा जाता है। उनकी नीतियाँ और दृष्टिकोण आज भी भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।

7. भारतीय राष्ट्रपति के रूप में:

राजेंद्र प्रसाद 1950 से लेकर 1962 तक भारतीय गणराज्य के राष्ट्रपति रहे। उनका कार्यकाल भारतीय राजनीति के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया है। वे पहले ऐसे राष्ट्रपति थे, जिन्हें लगातार दो बार चुना गया।

उनका नेतृत्व भारतीय लोकतंत्र को स्थिर और सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण था। उन्होंने भारतीय राजनीति में नैतिकता, ईमानदारी और निष्कलंक नेतृत्व का उदाहरण प्रस्तुत किया। उनका प्रशासन सादगी और ईमानदारी से परिपूर्ण था।

8. उनके व्यक्तित्व के गुण:

राजेंद्र प्रसाद का व्यक्तित्व अत्यधिक आदर्श और प्रेरणादायक था। वे न केवल एक महान नेता थे, बल्कि एक योग्य प्रशासनिक प्रमुख भी थे। उनकी विशेषताएँ निम्नलिखित थीं:

  • सादगी: वे जीवन में अत्यधिक सादा जीवन जीते थे। उनका व्यक्तिगत जीवन और कार्यशैली बहुत ही सरल थी, जो आम जनता के बीच एक आदर्श के रूप में स्थापित हुआ।
  • नैतिकता और ईमानदारी: राजेंद्र प्रसाद की नीतियाँ और निर्णय हमेशा नैतिकता और ईमानदारी से प्रेरित होते थे। वे कभी भी व्यक्तिगत लाभ के लिए अपनी नीतियों से समझौता नहीं करते थे।
  • विद्यार्थी और विद्वान: राजेंद्र प्रसाद एक महान शिक्षक और विद्वान थे। उनका ज्ञान न केवल राजनीति और प्रशासन में था, बल्कि वे एक विद्वान के रूप में भी प्रसिद्ध थे। उनका जीवन एक आदर्श था जो हमें शिक्षा और ज्ञान के महत्व को समझाता है।
  • लोकप्रियता: उनका लोकप्रियता का स्तर अत्यधिक था। वे भारतीय जनमानस के बीच अत्यधिक सम्मानित थे। उनके सरल और सादे व्यक्तित्व ने उन्हें हर वर्ग के लोगों के बीच लोकप्रिय बना दिया।

9. सम्मान और पुरस्कार:

राजेंद्र प्रसाद को उनके जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में योगदान के लिए अनेक पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया। उन्हें भारत सरकार द्वारा ‘भारत रत्न’ जैसे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया था। उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा और उनका नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज रहेगा।

राजेंद्र प्रसाद का जीवन हमारे लिए एक प्रेरणा का स्रोत है। उनका जीवन सादगी, संघर्ष, और समर्पण की कहानी है। वे भारतीय राजनीति और समाज में नैतिकता, ईमानदारी, और ज्ञान के प्रतीक बनकर उभरे। उनके योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। उनका नाम भारतीय राजनीति और समाज के इतिहास में हमेशा जीवित रहेगा।

उनके जीवन से हमें यह सिखने को मिलता है कि कठिनाइयाँ और संघर्ष हमेशा सफलता की ओर मार्गदर्शन करते हैं, यदि हम अपने उद्देश्य के प्रति ईमानदार और समर्पित रहते हैं।

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